चाहे अब स्याही सूख जाएँ
पर कलम को ना रूकने दुँगी
भरूँगी अपना लहु कलम में
सच को पन्नो पर अब लिख दुँगी
खिलखिला रहे है जो बच्चे खेतो में
खुशियां यूँ ना अब किसी कि छिनने दुँगी
देते है जो अन्न हमे उसे ना अन्न के लिए तरसने दुँगी
चाहे अब स्याही सूख जाएँ
पर कलम को ना रूकने दुँगी
भरूँगी अपना लहु कलम में!